गुजराती अर्बन फ़िल्म के नाम पर पनपता जातीवाद आपको नहीं दिखेगा ?
अगर आप गुजराती है, तो शायद ही एसा होगा की आप " सनेडॉ..." गीत पर नहीं थिरके होंगे। या फिर आप गुजरात के है तो आप शायद ही विक्रम ठाकोर या गमन देसाई को नहीं जानते होगे ।
यह गीत की लोकप्रियता या यह सुपरस्टार कलाकारों की लोकप्रियता कोई गुजराती अर्बन फ़िल्म की मोहताज़ नहीं । तो इतने लोकप्रिय गुजराती फिल्मो के कलाकार क्यों अर्बन फिल्मो के नाम पर अछूत बना दिया गया ? क्यों इन कलाकारों की फिल्मो को मल्टीप्लेक्स में नहीं दिखाया जा रहा ? क्यों इन फिल्मो को न्यूज पेपर में जगह नहीं मिलती ?
यह प्रश्न में इसलिए उठा रहा हु क्योंकि यहाँ से ही न दिखनेवाला जातिवाद मुझे महसूस होता है । जो मेरा दम घोटता है । में आपको कुछ विस्तार से बताना चाहूँगा, तो आपको समज में आ सकता है । गुजराती फिल्मो के सुपरस्टार विक्रम ठाकोर एक फ़िल्म की जितनी फीस लेते है, उस रकम से तिन गुजराती अर्बन फिल्म बनती है । फिर भी आप गुजराती फ़िल्म के इस सुपरस्टार को अनदेखा केसे कर सकते है, कुछ अर्बन गुजराती फ़िल्मवाले लोग ये कहते है की उनकी एक्टिंग अच्छी नहीं, तो में यह दोहरदु के बॉलीवुड में सलमान खान कहा बहुत अच्छा एक्टिंग करते है फिर भी वह बॉक्स ऑफिस के सुल्तान है ।
अब अचानक क्यों गुजराती अर्बन फ़िल्मो के नाम पर गुजरात की 80 % आबादी को फिल्मो से गायब कर दिया गया । आपको इस में कोई साजिश नजर नहीं आती । क्यों सबसे पॉप्युलर गीत देनेवाले लोग और कलाकार का अर्बन फिल्मो में मजाक बनाया जा रहा है । यहाँ मुझे जातिवाद की बू आती है । कुछ अमीरजादों ने गुजराती अर्बन फिल्मो क नाम पर एसा हल्ला मचाया है की वो नहीं आये थे तब तक गुजराती फिल्मो में कुछ नहीं था । तो में उनको बताना चाहता हु के आप पुरानी गुजराती फिल्मे ( भव नई भवाई, मानवीनी भवाई, कंकु, वीर मँगडॉवाला, खोला नो खुदनाऱ सहित अनगिनत फिल्म) देखिये, उनके कम्पेरिजन आप जो परोस रहे है वो फ़िल्में कही टिक सकती हे ।
अब अर्बन गुजरती फ़िल्म के नाम पर यह लोग अन्य गुजराती कलाकारों को निचा दिखने पर तुले है, तो मेरा यह कहना है की ये नोबत क्यों आई, अचानक कुछ लोगो को एसा क्या हुवा की उनको गुजराती फ़िल्म इंडस्ट्री की याद आ गयी ।
आप सोचिए, यह वाही लोग है जो कभी थियेटर में गुजरती फ़िल्म देखने नहीं गए लेकिन खुद जब फ़िल्म बनाने लगे तो जो लोग गुजरती फ़िल्म देखने जाते थे उनको अपनी अर्बन फिल्मो में बेवकूफ बताते है । जो विक्रम की फ़िल्म देखेगा उसे फ़िल्म का ज्ञान नहीं जो इनकी देखेगा वही अच्छा दर्शक ।
क्यों की यह लोग विक्रम ठाकोर की लोकप्रियता से डरे हुए है । वह रियल लाइफ के भी हीरो है। उनकी कहानी, उनका संघर्ष भी खुद एक फ़िल्म है । अब आप सोचिये क्यों इनसे यह व्यव्हार किया जा रहा है क्यों की वो महेनतकस पिछडा तपके से आते है । अभी सबसे पॉपुलर लोकगायक गमन देसाई भी मालधारी कोम्युनीटि से आते है। शायद यही तो कारन नहीं ? अब आप मुझे कहा की बात कहा जोड़नेवाला बतायेंगे ।
लेकिन में आपको उदाहरण देदू ......
आप को पता है की अमिताभ बच्चन से अछि एक्टिंग तो नसरूदीन शाह करते है तो भी अमिताभ जितनी सोहरत शाह को नही मिली ? क्यों की बाजार में ज्यादा पैसा और नाम तो अमिताभ ने कमाया । लेकिन जब गुजराती फिल्मो की बात आती है तो आये दिन पीटनेवाली अर्बन गुजराती फिल्मो की चर्चा ऐ होती है और सुपरहिट गुजराती फिल्मो, लोकप्रिय गीत के गुजराती कलाकारों की चर्चा नहीं होती क्यों की यह लिखनेवाले के मन में बेठा जातिवाद दस्तक देता है ।
नहीं समजें.......
Jignesh parmar....
अगर आप गुजराती है, तो शायद ही एसा होगा की आप " सनेडॉ..." गीत पर नहीं थिरके होंगे। या फिर आप गुजरात के है तो आप शायद ही विक्रम ठाकोर या गमन देसाई को नहीं जानते होगे ।
यह गीत की लोकप्रियता या यह सुपरस्टार कलाकारों की लोकप्रियता कोई गुजराती अर्बन फ़िल्म की मोहताज़ नहीं । तो इतने लोकप्रिय गुजराती फिल्मो के कलाकार क्यों अर्बन फिल्मो के नाम पर अछूत बना दिया गया ? क्यों इन कलाकारों की फिल्मो को मल्टीप्लेक्स में नहीं दिखाया जा रहा ? क्यों इन फिल्मो को न्यूज पेपर में जगह नहीं मिलती ?
यह प्रश्न में इसलिए उठा रहा हु क्योंकि यहाँ से ही न दिखनेवाला जातिवाद मुझे महसूस होता है । जो मेरा दम घोटता है । में आपको कुछ विस्तार से बताना चाहूँगा, तो आपको समज में आ सकता है । गुजराती फिल्मो के सुपरस्टार विक्रम ठाकोर एक फ़िल्म की जितनी फीस लेते है, उस रकम से तिन गुजराती अर्बन फिल्म बनती है । फिर भी आप गुजराती फ़िल्म के इस सुपरस्टार को अनदेखा केसे कर सकते है, कुछ अर्बन गुजराती फ़िल्मवाले लोग ये कहते है की उनकी एक्टिंग अच्छी नहीं, तो में यह दोहरदु के बॉलीवुड में सलमान खान कहा बहुत अच्छा एक्टिंग करते है फिर भी वह बॉक्स ऑफिस के सुल्तान है ।
अब अचानक क्यों गुजराती अर्बन फ़िल्मो के नाम पर गुजरात की 80 % आबादी को फिल्मो से गायब कर दिया गया । आपको इस में कोई साजिश नजर नहीं आती । क्यों सबसे पॉप्युलर गीत देनेवाले लोग और कलाकार का अर्बन फिल्मो में मजाक बनाया जा रहा है । यहाँ मुझे जातिवाद की बू आती है । कुछ अमीरजादों ने गुजराती अर्बन फिल्मो क नाम पर एसा हल्ला मचाया है की वो नहीं आये थे तब तक गुजराती फिल्मो में कुछ नहीं था । तो में उनको बताना चाहता हु के आप पुरानी गुजराती फिल्मे ( भव नई भवाई, मानवीनी भवाई, कंकु, वीर मँगडॉवाला, खोला नो खुदनाऱ सहित अनगिनत फिल्म) देखिये, उनके कम्पेरिजन आप जो परोस रहे है वो फ़िल्में कही टिक सकती हे ।
अब अर्बन गुजरती फ़िल्म के नाम पर यह लोग अन्य गुजराती कलाकारों को निचा दिखने पर तुले है, तो मेरा यह कहना है की ये नोबत क्यों आई, अचानक कुछ लोगो को एसा क्या हुवा की उनको गुजराती फ़िल्म इंडस्ट्री की याद आ गयी ।
आप सोचिए, यह वाही लोग है जो कभी थियेटर में गुजरती फ़िल्म देखने नहीं गए लेकिन खुद जब फ़िल्म बनाने लगे तो जो लोग गुजरती फ़िल्म देखने जाते थे उनको अपनी अर्बन फिल्मो में बेवकूफ बताते है । जो विक्रम की फ़िल्म देखेगा उसे फ़िल्म का ज्ञान नहीं जो इनकी देखेगा वही अच्छा दर्शक ।
क्यों की यह लोग विक्रम ठाकोर की लोकप्रियता से डरे हुए है । वह रियल लाइफ के भी हीरो है। उनकी कहानी, उनका संघर्ष भी खुद एक फ़िल्म है । अब आप सोचिये क्यों इनसे यह व्यव्हार किया जा रहा है क्यों की वो महेनतकस पिछडा तपके से आते है । अभी सबसे पॉपुलर लोकगायक गमन देसाई भी मालधारी कोम्युनीटि से आते है। शायद यही तो कारन नहीं ? अब आप मुझे कहा की बात कहा जोड़नेवाला बतायेंगे ।
लेकिन में आपको उदाहरण देदू ......
आप को पता है की अमिताभ बच्चन से अछि एक्टिंग तो नसरूदीन शाह करते है तो भी अमिताभ जितनी सोहरत शाह को नही मिली ? क्यों की बाजार में ज्यादा पैसा और नाम तो अमिताभ ने कमाया । लेकिन जब गुजराती फिल्मो की बात आती है तो आये दिन पीटनेवाली अर्बन गुजराती फिल्मो की चर्चा ऐ होती है और सुपरहिट गुजराती फिल्मो, लोकप्रिय गीत के गुजराती कलाकारों की चर्चा नहीं होती क्यों की यह लिखनेवाले के मन में बेठा जातिवाद दस्तक देता है ।
नहीं समजें.......
Jignesh parmar....