में ज़ाडु हु
सदियो से कोने में पड़ा था
मुझे छूने से हर कोई डरा था
जिसने पकड़ा मेरा हाथ
वो भी मेरे साथ सडा था
कभी किसी की पूछ बन के तना था
न में बदला न मुझे पकड़ने वाला हाथ
आज भी में ज़ाडु पुकार जाता हु
आज भी वाही ठोकरे खता हु
में ज़ाडु हु
अभी तक में अपनी वजूद खोजता हु
कभी उसने मुझे उठाया था
मुझे ईश्वर का रास्ता बताया था
तब मन ही मन में मुस्कराया था
लेकिन न मंदिर में जगह मिली
न मेरे काम की अहमियत मिली
अब तो चुनावो में बिकता हु
मेटे नाम से वोट बटोरे जाते है
पर मुझे इज्जत देने से वो कतराते है
अब सोचता हु की
नाम बदल दू
काम बदल दु
तेरी दुनिया का ख्याल बदल दु
अब में ज़ाडु नहीं
अब में सफाई नहीं करता
अब में भी इंसान हु
तू गिने तो ठीक
नहीं गिने तो भी इंसान हु
अब में अपनी बात कहूँगा
अब खुद को नहीं तुजको ज़ाडु कहूँगा