બુધવાર, 14 ડિસેમ્બર, 2016

" गुजराती लिटरेचर फेस्टिवल " - घिसेपिटे विषयो के साथ अपनी जड़ता की और तेजी से आगे बढ़ता हुवा ?



" गुजराती लिटरेचर फेस्टिवल " - घिसेपिटे विषयो के साथ अपनी जड़ता की और तेजी से आगे बढ़ता हुवा ?


ऐसे भी गुजराती अदब (साहित्य) कुछ घरानो और लोगो की जागीर रहा । ये कुछ कलम कातिलो ने न किसी को मोका दिया, न किसी को सुना । अब फेस्टिवल करना है तो करिये लेकिन कुछ शर्म तो करो । दिखाने के लिए भी विषयो में थोडा वैविध्य तो लाओ ।
पहले दिन का पहला विषय ही देखिये.... जिस पे बौद्धिक लोग चर्चा करेंगे । विषय है " सती के सन्नी" ( बॉलीवुड की फिल्मो में   महिलाओ के चित्रण और जातिभेद पर चर्चा ) ये अजीबोगरीब टाइटल किस के उपद्रवी मस्तिस्क की पैदास होगा ? खूब सोचा फिर ज्योतिराव फुले की किताब " गुलामगिरी " की कुछ बातें याद आई । मन ही मन में मुस्कुराया.....
"सती" का कॉन्सेप्ट भी आपका और सती जब "सन्नी" बनी तो आप ही डर गए । आपने ही पहले सती के नाम पर महिलाओ को मजबूर किया के उनके शरीर का एक ही अंग आपके काम का है । तो उस अंग के इर्दगिर्द ही आपकी सती की पवित्रता घूमती रही ।
 जब सती की बेटी विदेश में पढ़ी और अपने हक़ को जाना। उसने खुलेआम अपने पति के साथ सोने में और उसे दिखने में कोई दिक्कत नहीं तो भला आपको क्या है । लेकिन आज भी वो सन्नी को बर्दाश्त नहीं कर सकते । छुपकर देखना है, खुले में आलोचना करनी है । सन्नी होना अपराध नहीं लेकिन सती कहलवाना अपराध है ।  बात थोड़ी साईड ट्रैक हुई लेकिन देखिए....
अब इस विषय से अच्छा तो आप यह विषय रखते की गुजराती अदब में " महिलाओ " शोषण, गुजराती अदब ने महिलाओ से अपना हक़ कैसे छिना या फिर ये रख लेते गुजराती अदब यानि सिर्फ कुछ घरानो या समुदाय की महिलाओ की कहानिया । 

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હું મારી આસપાસ એવા ઘણા લોકોને ઓળખું છું જેઓએ જીવનની કોઈ મુશ્કેલી કે દુઃખ વેળાએ આત્મહત્યાનો પ્રયાસ કર્યો હોય... હું આ આપઘાતનો પ્રયાસ સાંભળ...